आधुनिकता की चकाचौंध में मिट्टी के दीए बनाने की प्रथा दम तोड रही है,

रिसौली(बदायूं, पत्रकार आकाशदीप सिंह ) आधुनिकता की चकाचौंध में मिट्टी के दीए जलाकर दीपावली मनाने की प्रथा दम तोड़ रही है, मोर सिंह प्रजापति बताते हैं जब‌ से बिजली की झालरें,दीए,कंडील अन्य वस्तुएं बाजारों में आने से लोग मिट्टी के दीए कम लेते हैं, गांव में कुम्हार जाति के लोग नाम मात्र के ही बर्तन बनाते हैं, उन्होंने बताया कि एक दीए की कीमत एक रुपया है,जो झालर,बल्व की कीमतों से बहुत कम है,मगर लोग दीए की अपेक्षा बिजली के उपकरण अधिक प्रयोग करते हैं,उसका विशेष कारण है कि दीए में तेल डालना,तेल के दाम आसमान छू रहे हैं,, धीरे धीरे यह प्रथा लुप्त होने के कगार पर है, क्योंकि नई पीढ़ी इस काम को करना नहीं चाहती,,,,

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